एक नहर
एक नहर
एक नहर जो कल-कल करके बहती थी,
आज देखो,पल-पल गंदी होती रहती।
लोग जहां नहाते थे,
वहीं अब रक्त बहाते हैं।
वह नदी जो मोती से भी ज़्यादा चमकती थी,
अब उसमें प्लास्टिक चमकता है।
ऐ मनुष्य देख जरा उस नहर को,
जो पूरे दिन हंसती थी
अब देख ज़रा उस नहर को,
जो पल-पल पूरे दिन रोती रहती।
एक नहर जो खुशी-खुशी बहती थी,
अब वही नहर दुखी-दुखी थम सी गई।
एक नहर जो पहले खुशी के
पानी से भरी रहती थी,
अब वही नहर आंसुओं से भरी रहती।
एक दिन वह भी आएगा
जब सारा जल समाप्त हो जाएगा,
ऐ मनुष्य तू तब रो-रो के
माफ़ी के लिए गिड़गिड़ाए गा।