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Sunita Mishra (Adheera)

Inspirational

5.0  

Sunita Mishra (Adheera)

Inspirational

एक मुक़म्मल ज़िंदगी

एक मुक़म्मल ज़िंदगी

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ज़िंदगी छोटी है तो क्या?

चलो मिलकर इसे मुक़म्मल करते हैं।

यकीन और सच्चाई के फूल तुम नज़र करो

प्यार और खुशी के रंग हम यहाँ भरते हैं।


माना की उलझने ज़िंदगी में हैं भरी,

सुख के पल हैं कम दुख की घड़ियाँ हैं बड़ी।

पर एक हाथ प्रेम का आगे बढ़ा के देखो तो

वो ज़िंदगियाँ भी सँवर जाँएगी, जो

चिर तमस में हैं पड़ी।


माना की ज़िंदगी थोड़ी अजीब है,

पल में हँसाती है, पल में आँसू दे जाती है।

पर जो गमों को दिल में रख के भी

मुस्कुराते हैं,

ज़िंदगी उन्हीं के आगे शीश झुकाती है।


माना कुछ पाना यहाँ आसान नहीं,

पर बिना संघर्ष के सफलता मिलती है कहीं?

एक बीज धरती में जितना दबेगा और तपेगा,

भविष्य में वही तो कल्पवृक्ष बनेगा।


माना इस सफर में शूल ज़्यादा फूल हैं कम,

भले ही गुज़रा नहीं ग़म-ए-दर्द का मौसम।

पर याद रखना सौ दर्द भी तोड़ नहीं सकते,

जब तक, खुद हालातों से हारे नहीं हम।


माना ठोकरें लगेंगी पर थमना नहीं संभलना होगा,

मंज़िल की चाह है तो काँटों पर भी चलना होगा।

यूं ही नहीं सफलता का स्वाद तुम चख पाओगे,

सोने जैसा चमकना है तो अग्नी की

ताप में जलना होगा।



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