एक मुलाकात
एक मुलाकात
आज फिर उससे एक मुलाकात हुई
हवाओं का रुख आज भी उसकी ओर था
मौसम भी कुछ बेरंग सा था
पर फिर भी मुकद्दर में मिलना तय था
नज़रें मिलीं
जैसे कुछ कहना हो उसे भी
जिसका मुझे इंतज़ार था।
काले रंग का शर्ट काफ़ी
जंच रहा था उस पर
सोचा जाकर कह दूँ
फिर से निःशब्द रह गयी मैं
कुछ हफ्ते पहले वही चाय की
टपरी पर मिला था वो
सोचा कहीं यही वो आखिरी दिन न हो
मिलने की कोई उम्मीद न रही
पर फिर से हम राहों में टकरा गये
नज़रे मिलीं
बातें फिर भी अनकही रह गयीं
न मैने कुछ कहा
न उसने
हम दोनों फिर से एक अनकही
कहानी का हिस्सा बन गये
और जाते-जाते फिर से नज़रों के
इशारों से मिलने का वादा कर गये
बिन कुछ कहे
बिन कुछ सुने।