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Shailaja Bhattad

Abstract

4.0  

Shailaja Bhattad

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एक किस्सा।

एक किस्सा।

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पूरे दिन का एक खुशनुमा हिस्सा, 

गढ़ देता है,

 पूरे जीवन का एक किस्सा। 

जी लेते हैं जब हम,

 जिंदगी का अपना हिस्सा। 

वरना गुजरी हुई गलियों से,

 बार-बार गुजरते ही हैं । 

जाने जिंदगी को किस मोड़ पर ले आते हैं। 

दिन भर आ , जा करती 

हमें ही अपना घर बना लेती है। 

कभी आंखों में नमी, 

तो कभी दिल को सुकून देती है। 

कभी गालों को बार-बार भिगोती तो ,

कभी लबों पर मुस्कान बिखेरती है।

जाने क्या सोचकर,

 रोज का सिलसिला बना लेती है । 

मायूसी में भी लेकिन फिर,

 जिंदगी जीने का हुनर बताती है।  

यह छोटी सी जिंदगी, 

जाने  क्या- क्या सिखाती है।


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