एक किस्सा।
एक किस्सा।
पूरे दिन का एक खुशनुमा हिस्सा,
गढ़ देता है,
पूरे जीवन का एक किस्सा।
जी लेते हैं जब हम,
जिंदगी का अपना हिस्सा।
वरना गुजरी हुई गलियों से,
बार-बार गुजरते ही हैं ।
जाने जिंदगी को किस मोड़ पर ले आते हैं।
दिन भर आ , जा करती
हमें ही अपना घर बना लेती है।
कभी आंखों में नमी,
तो कभी दिल को सुकून देती है।
कभी गालों को बार-बार भिगोती तो ,
कभी लबों पर मुस्कान बिखेरती है।
जाने क्या सोचकर,
रोज का सिलसिला बना लेती है ।
मायूसी में भी लेकिन फिर,
जिंदगी जीने का हुनर बताती है।
यह छोटी सी जिंदगी,
जाने क्या- क्या सिखाती है।