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एक एहसास

एक एहसास

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जिस बदन को चलते हुए देखा है,

जलते हुए आज उसे मै देखूँगा कैसे ?

सुबह जिन हाथों से चाय बनाती थी,

उन हाथों को अपने हाथों से आज मैं

जलाऊँगा कैसे ?


साथ जीने, मरने का वादा तोड़कर

चली गयी तुम,

अकेले इस सफ़र को

अब मैं पूरा करूँगा कैसे !


बिना कुछ कहे तुम मेरी

सब बात जान जाती थी,

अनकही वह सब बातें,

आज मैं बताऊँगा किसे ?


आज तक मेरे घर को

तुमने संवार कर रखा था,

तुम्हारे बिना उस घर में, अकेले मैं

रह पाऊँगा कैसे ?


बीत गए सुख और दुख के दिन

अब तक तुम्हारे साथ,

बचे हुए इन दिनों को

तुम्हारे बिना मैं बिताऊँगा कैसे ?


क्यों चली गई तुम इस तरह मुझे

मझधार में छोड़कर ?

छिपा कर रखे हुए इन आँसुओं

को अब मैं रोकूँगा कैसे ?


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