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Dr Saurabh Singh

Tragedy

4.4  

Dr Saurabh Singh

Tragedy

एक दिन मर के जाना है

एक दिन मर के जाना है

2 mins
423


सब कुछ यहाँ बेगाना है 

एक दिन मर के जाना है 

जो मिला यहीं रह जाना है 

एक दिन मर के जाना है। 


ज़िंदगी है कितनी सधी-बधी

सोचूँ में ये कभी-कभी 

ईर्ष्या व द्वेष कितना और जगाना है 

एक दिन मर के जाना है। 


परिवार में कितने बिछड़ गए 

बाक़ी लोगों के दिल सिकुड़ गए 

जाने कहाँ सब का आशियाना है 

एक दिन मर के जाना है। 


कृत्रिम है आज सब लोग यहाँ 

परिवार का अर्थ खत्म जहाँ

ऐसे में स्नेह कहाँ मिल पाना है 

एक दिन मर के जाना है। 


प्यार के लिए कितने हैं पल

पर कितने एकाकी है सब आज- कल 

इसका हल कहाँ समझ में आना है 

एक दिन मर के जाना है। 


बड़े ज्येष्ठ थे बड़े प्रबल 

नैनों के सम्मुख बने निर्बल 

देख के दिल सकुचाता है 

एक दिन मर के जाना है। 


भाई- बहन का अनमोल मेल 

बड़े-बुजुर्गों का निश्छल प्रेम 

क्या अब सिर्फ़ किसी गीत का फ़साना है 

एक दिन मर के जाना है। 


माटी के गुड्डों सा ठिकाना यहाँ 

लकड़ी की काठी सा जल जाना यहाँ 

फिर भी बनावटी बोझ उठाना है 

एक दिन मर के जाना है। 


क्यों सब भूले ये सच्चाई 

कितना अपने रूह की रुसवाई 

बीता समय वापस नहीं आना है 

एक दिन मर के जाना है। 


बाबा नहीं रहा अब सर पे आपका हाथ 

नहीं रहा अब वो आपका साथ 

यादों की ये नयी पराकाष्ठा है 

एक दिन मर के जाना है। 


अम्मा मेरे घर की लक्ष्मी थी 

पर क्यूँ आपको इतनी जल्दी थी 

नहीं आप के बिना गुज़ारा है 

एक दिन मर के जाना है। 


जानते है कि एक पाँव कब्र में 

फिर भी तल्खियाँ करें कितने सब्र में 

उन्हें सब हासिल कर जाना है 

एक दिन मर के जाना है। 


मतलब के सारे रिश्ते नाते 

कहाँ से अपना-पन लाते 

परिवार के भीतर कितने परिवार बनाना है

एक दिन मर के जाना है। 


घटनाओं पे घटनायें घटित हुई 

यातनाओं पे यातनायें यथार्थ हुई 

जिनको सोच के मन शर्माता है 

एक दिन मर के जाना है। 


वो मेरे गाँव के नीम का पेड़ 

जिसमें है प्रचंड समय का फेर 

लगता है उसको भी ओझल हो जाना है 

एक दिन मर के जाना है। 


घमंड बड़ा था बीते दौर पे 

चलते थे जहान में बड़े रौब में 

क्या उसके ज़िक्र को भी मिट्टी में मिल जाना है 

एक दिन मर के जाना है। 


एक परिवार तो कई वार 

परिवार अलग तो तार- तार

पर अनजान इससे मेरा ज़माना है 

एक दिन मर के जाना है। 


बोले सौरभ कवि आप से 

प्रेम से रहो सब साथ में 

क्यूँकि सब के भीतर आहना है 

एक दिन मर के जाना है। 



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