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Payal Varshney

Drama

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Payal Varshney

Drama

एक बेटी

एक बेटी

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चलने को बोला तो चल पड़ी,

उठने को बोला तो उठ गई,

अपने अस्तित्ब की लड़ाई में,

यूँ हीं वो पल पल मर रही।


क्यों उससे दमन छूटा लिया ?

क्यों जीवन से पहले ही मिटा दिया ?

क्यों गले से लगाया नहीं ?

लड़की हूँ इसीलिए मुझे अपनाया नहीं ?


माँ के दूध से, आँचल की छांव,

सबके लिए लड़ रही वो,

आज भी घुट-घुट कर जी रही वो,

यूँ हीं पल पल मर रही वो।


कभी बोझ समझ के फ़ेक दिया,

कभी दहेज़ के लिए जला दिया,

कभी सती बना दिया उसे,

कभी घूँघट में छुपा दिया उसे।


सृष्टि का आरम्भ है वो,

सबके अस्तित्व की पहचान है वो,

हर रिश्ते की डोर है वो,

कभी दुर्गा, तो कभी काली।


कभी ममता की छांव है वो,

बहन, तो कभी पत्नी है वो,

इतने रिश्तो में बंधी,

किसी पर बोझ नहीं, एक बेटी है वो।


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