एक अनजानी-सी प्यार
एक अनजानी-सी प्यार
मैं जानती थी नहीं,
तेरी मुस्कान,
और दिल में मेरे लिए,
बना दिया घर,
एक वचन से !
नज़र से तूने बना दिया,
सपना भी मैं जानती थी नहीं !
दिल की रास्तों में,
मुझे रखा दिया पर,
तेरी आँखों से मुझे,
नज़र नहीं आती !
घिलते फूलों से,
ठंडी हवा से तूने,
मेरे बारे में बोलता था,
पर मैं जानती थी नहीं !
एक दिन,
दूसरे के हाथ पकड़ के,
मैं दूर चली जाती वक्त,
तेरा मन टूट गया मगर,
मैं जानती थी नहीं !
तूने मेरे लिए बना दिया सपना,
घर गिर गया और,
तूने मौत के हाथों में चला गया मैं,
जानती थी नहीं !
मगर,
"प्यार है" ऐसा एक वचन,
तेरी मुँह से सुनने के लिए,
मैं इंतज़ार करती थी,
और ये तू भी नहीं जानता था !
