एक आस
एक आस
एक आस पल रही
मेरे उदर की चौखट पर
एक उत्सव की तरह
चलेगा नौ महीने का सफ़र
उत्कृष्ट कृति ईश की
रचने जा रही हूँ
ममता नि:स्वार्थ मेरी
बस एक कोशिश
सर्वश्रेष्ठ तोहफे की
सजा रही हूँ पल-पल
हर एक नेकी की नेमतों से
आराधना सी
महसूस होती है मेरे भीतर
मेरे रक्त की बूँद से सिंचित
मौन संवाद साधे कहती है
मेरी प्रतिकृति मुझसे
माँ मैं तेरा तनूज
तेरी एक-एक पीर का साक्षी
मेरा आलिंगन तुझे मेरी खुशी
मैं ला रही हूँ तुझे
उस तम की दुनिया से
उजाले की ओर
इस भूमि के
बेहतर कल की ख़ातिर
मान रखना इस माँ का
एक मिसाल बन अपनेपन की
चाह नहीं
मर्यादा पुरुषोत्तम की
करना तुम हर नारी की इज्जत
एक कलंक मिटे कलयुग का कहीं
कोई मासूम डरे ना तुमसे कभी।।
