एक आरजू
एक आरजू
मैं काली का अवतार हूँ,
पर अकेले सफ़र कर सकूँ
इतनी साहसी नहीं।
मैं सरस्वती हूँ,
पर कितना
और कब तक पढूँगी,
मुझे खुद मालूम नहीं।
मैं तो साक्षात लक्ष्मी हूँ,
पर कब कमाऊँगी,
कब तक कमाऊँगी,
कितना खर्च करूँगी,
किस पर करूँगी,
ये फैसला शायद ही
कभी खुद कर पाऊँगी।
मैं अपनी पहचान
बनाने के काबिल हूँ,
फिर भी शायद
किसी के साथ मेरा रिश्ता,
मेरी पहचान का
हिस्सा ना होकर,
मेरी पूरी पहचान हो जाएगा।
क्यों नहीं मैं सिर्फ
एक इंसान हो सकती हूँ ?
जिसके अपने जज़्बात,
अपने सपने
अपने हौसले,
अपने फैसले हों।।
