ए ज़िन्दगी
ए ज़िन्दगी
तुझसे रूठा नहीं हूँ ए ज़िन्दगी,
बस थोड़ा उलझ सा गया हूँ,
तुझे भी लगता होगा,
पहले कितना अच्छा था,
अब कुछ बदल सा गया हूँ।
नहीं ए हमसफ़र मेरे,
प्रीत तो आज भी उतना ही है,
बस उम्र के साथ कुछ दिखावटी
पाखंडी रिश्तों की बंजर भूमि को
अपने प्यार के अमृत से सींचते-सींचते,
उसी दलदली जमीन में
थोड़ा धस सा गया हूँ,
तुझसे रूठा नहीं,
बस थोड़ा उलझ सा गया हूँ।
तूने भी तो वक़्त के साथ मिलकर
क्या हसीं सितम दिखाया,
बचपन में स्नेह की वर्षा की,
पर जवानी में तूने भी तो
आग का दरिया पार करवाया,
पर जान ले, लिख ले,
फिर से आएंगे वो दिन पुराने,
क्यूंकि आशिक तेरे होंगे बहुत,
पर होगा न ऐसा कोई ऐसा, जैसा मैं हूँ,
तुझसे रूठा नहीं ए जिंदगी,
बस थोड़ा उलझ सा गया हूँ,
थोड़ा उलझ सा गया हूँ।