माँ
माँ


माँ दिन बाद बहुत आज बैठा हूं ,
लेकर वक़्त से कुछ समय उधार ,
सोच विचार बहुत किया ,की क्या लिखूं ,
क्या दूं इस कोरे कागज पर उतार ।
रचना करूंगा मैं प्रकृति पर ,
महानुभावों की भांति यह था ठाना ,
या लिख दूं उसके बारे में ,
जिसे दुनिया कहती है महाराणा ।
या करूं वरण बारे में दुनिया के अपने ,
ख्याल आया फिर यह भी एक ।
स्मरण हुआ की रेे माँ तूही तो दुनिया है अपनी ,
तेरे आगे क्या है अच्छा , कौन है तुझसे ज्यादा नेक ।