ए जिन्दगी
ए जिन्दगी
ए जिन्दगी , क्यों तू मुझे उठाती है ?
उठाती है तो फिर से क्यों गिराती है ?
होने दे मुझे खड़े अपने दम पर ,
रोने मत दे मुझे किसी भी गम पर।
न समझ मुझे तू इतना कमजोर ,
बनाऊँगा मै खुद को आत्मविभोर।
नहीं करूंगा मै रो-रोकर शोर !
मुझे पता है कि नहीं हँ मैं श्रेष्ठ।
लेकिन ना मै कभी हार मानकर झूकूंगा,
ना मैं कभी तुम्हारे दबाव में आकर रुकूंगा।
ए ज़िन्दगी, मुझे तू उठाना बंद कर,
गिरना तो है ही,
उठना मैं खुद सीख जाऊंगा।