ए-जिंदगी उड्ँगी मैं
ए-जिंदगी उड्ँगी मैं
जिंदगी कहती हैं, अब नहीं
बहुत तकलीफ़ होती है,
इस जिंदगी से, अब रुक जा
मैंने कहा ए-जिंदगी,
चींटी जब पर्वत पर चढ़ती है
वह गिरती हैं, संभलती है
और फिर चलती है
मैं भी आगे बढ़ूँगी,
गिरूँगी, सम्भलूंगी पर
मैं रुकूँगी नहीं, उडूंगी।