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jitendra kumar sarkar

Romance

4  

jitendra kumar sarkar

Romance

ए हमनवां

ए हमनवां

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उसे जी-भर देख लूं मैं ,जान में जान आ जाए

जब मिले बिछड़े हमनवां , तन्हाई दूर हो जाए

मिले जहां कंठ-कंटीले पुष्प , चमन के फूल बन जाए

गगन-सा रुप वह चमके, सदा-ए -बहार आ जाए


संध्या तुम जब घर आओ , मौहलत साथ तुम लाना

नजरें तो उठा लूंगा , पलकें साथ तुम लाना 

 जब हम बनेंगे हमसफ़र ,हवस का बाग ना लाना 

मोती सा चमके चेहरा, चमकनी रात तुम लाना 


जब निकलूं चौखट उसके, नहीं कहती मिलने मुझे आओ

तनिक न बात उलझाओ , छत से नजरें मिला जाओ

है जब प्रीत लगी तुमसे, कहूं दिल को तोड़ न जाओ

ऐसे यूं शरमाओ ना,कुछ हमसे बोल भी जाओ


अब हुआ यूं कि मेरे दिल के , कभी तुम पास मत आना

समंदर पार कर भी ना, दिलदार मत कहना

जरा सी गुफ्तगू न कर सके तो, इश्क का नाम मत लेना 

दिल को मार हम लेंगे, दिल को मार तुम लेना।


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