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Rashi Rai

Abstract

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Rashi Rai

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दुनिया

दुनिया

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जिसकी दुनिया ही उससे उपजी परछाईं हो

जिसके लिए हर एक जगह उसी की धुन समायी हो।


क्या पूरब क्या पश्चिम

क्या उत्तर क्या दक्षिण,

सब ओर उसका घर है

हर जगह उसका शहर है।


बस जाओ जहां हो बसेरा

उगती धूप से हो सवेरा,

ये उजला चाँद ढलके गर

अगला दिन ले जाये किसी अलग ड़गर,

तो वो भी घर ही सा है

पक्षियों का असर सा है।


ये धुन जो मन मोह ले,

सरगम जो गीत बुन ले,

क्या ये जमीं लड़ाई में लड़ते हो,

कैसे बाटोगे उन्हें जिनमे सारी

दुनिया ही समायी हो ।



ये जमीनी बहस बंद करो

जमीर अपना बुलंद करो,

करो भला सबका

लड़ो सच्चाई के लिए

जिसकी दुनिया ...है l









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