STORYMIRROR

Pushp Lata Sharma

Abstract

3  

Pushp Lata Sharma

Abstract

दुखियों के घर जाकर देखा

दुखियों के घर जाकर देखा

1 min
351

दुखियों के घर जाकर देखा

जीवन कितना दूभर देखा।


घना अँधेरा तंग कोठरी

खाली पड़ा कनस्तर देखा।


भूख बेबसी देख गरीबी 

रोज पिघलता पत्थर देखा।


ऊँचे महल बनाने वाला

सोता फुटपाथों पर देखा।


सर्दी गर्मी मँहगाई का 

उठता रोज बवंडर देखा।


भूधर , मोची , माली ने कब 

यहाँ सुखों का मंजर देखा।


झीनी ओढ़ रजाई ठिठुरे 

कितना दुखी दिसंबर देखा।


मरी नहीं फिर भी सच्चाई  

जग ने खूब कुचल कर देखा।


बेटे को विद्वान बनाया।

माँ ने कभी न अक्षर देखा।


भूखे पेट सभ्यता भूले 

उन्हें उठाते खंजर देखा।


बाढ़ बहाई सुख की क्यारी 

मरता कृषक तड़पकर देखा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract