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Tragedy

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दसवीं एक मोड़

दसवीं एक मोड़

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जब मैं दसवी उत्तीर्ण हुआ,

हर तरफ लहर खुशी की थी 

घर पर पड़ोसियों का हुजूम था,

ये लड़का यूँ कर जायेगा

कहाँ किसे मालूम था।


कुछ की मंशा अच्छी थी 

कुछ जलन भाव से आए थे 

कुछ शाबाशी देने हेतू 

तो कुछ पूड़ी खाने आए थे। 


कुछ का तो दिल था जल रहा,

पर होंठों पे मुस्कान थी 

पर ऐसे दुष्टो की खूब मुझे पहचान थी

भले ही ऊपर से ये लग रहे,

 

जितने भी हँसमुख और भोले हो 

पर भीतर तो आग लगी थी 

जैसे ग्रीष्म ऋतु में बरसे

इनके घर मे आग के गोले हो। 


सब बाँट रहे मिष्ठान थे 

हर मुख पर मेरे नाम थे 

परंतु मैं तो जुटा रहा था

स्मृतियाँ बीते सालों की,

 

जब ये कहते थे मुझको कि

आजा मेरी ठेरी पर

मिलकर काँटेगे पान,

क्या कर लेगा तू पढ़-लिखकर। 


वो कहते थे तू गधा है,

तुझसे न हो पायेगा 

पन्ने पलट-पलट कर तू

बस यूँ ही मर जायेगा। 


लेकिन मैंने दिखा दिया था,

मुझमे भी कुछ बात है 

जीवन के इस खेल में मैंने,

दे दी उनको मात है। 


वैसे ये खबर हर घर

मोहल्ले छाई थी 

जैसे दिवाली में बटती

बताशे और लाई थी।


मैंने भी मन में सोच लिया था,

विज्ञान मुझे तो चुनना है 

अपने सपनों को मेहनत से,

आज इन्हें तो बुनना है। 


मैंने भी सोची गणित की थी,

और लोगो से परामर्श लिए 

कुछ ने हामी भरी मगर,

कुछ ने थे हाथ खड़े किए। 


मानो की मुझको चेता रहे हो,

ये राह नहीं आसान है 

कुछ लोग हुए है सफल यदि,

बहुतों की ली इसने जान है। 


मैं कहाँ सुनने वाला था,

सच से कोसों दूर था 

थे मैने 90% अर्जित किये,

और अपने ही मद मे चूर था। 


कुछ ने कहा गणित शौक होगा इसका,

कुछ को लगा मैं मजबूर था 

पर बात गलत दोनों की थी,

मुझमें तो बस गुरूर था। 


क्या खबर थी मुझे कि,

लगने वाला था झटका 

जिस गणित से पहले 2-2 हाथ किये,

उसी ने मुझको दे पटका। 


आज जब मै चिंतन करता हूँ,

बीती उन बातों पर 

तब लगता है गलत किया था,

करना था मुझको कुछ हटकर। 


फिर लगता किस्मत थी शायद,

इच्छा सारी प्रभु की थी 

कुछ उनकी कुछ मेरी लेकिन

गलती इसमें सभी की थी। 


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