दस्तक
दस्तक
सुनो, जब तुम आओ तो दस्तक देते समय ध्यान रहे की मुझे एहसास हो तुम्हारे आने का !
मैं थक चुकी हूं तुम्हें इस अंधेरे में सोचते सोचते, कम से कम मुझे यह तसल्ली हो की तुम ना सही, तुम्हारी परछाई से तो रूबरू हूँ !
कहीं तुमसे ना मिल पाने की वजह से तुम्हारा अस्तित्व मेरी जिंदगी से खो न जाएं !
तुम मेरे सामने निशब्द खड़े रहो और मैं तुम्हें पहचान ना पाऊं,
पर हां मैं तुम्हारी इस निशब्दता में शब्द ढूंढकर तुम्हें समझने की पूरी कोशिश करूंगी !
मैं नाराज़ होंगी तुमसे और बताऊंगी तुम्हें की बहुत देर कर दी तुमने आने में,
तुम्हारी ग़ैर-मोजुदगी को ही तुम्हारा होना समझकर जीना सीख लिया मैंने !
पर अब क्या मुझे यह बताने आए हो कि - "तुम हो" ? और अब मुझे फ़िर से एक नए तरीके से तुम्हारे साथ खुश रहना सिखना होगा ?
अच्छा सुनो, फिर वादा करो कि तुम वापस नहीं जाओगे !
क्योंकि तुम्हारे आने के बाद वापस जाना शायद मुझे गवारा ना हो और तुम्हारी यादों के साथ जी पाना मेरे बस कि बात न हो !
तो फिर पता है ना तुम्हें- यही की तुम जाने के लिए नहीं बल्कि हमेशा मेरे साथ रहने आ रहे हो ?
और हां ! तो दस्तक देते समय ज़रा ध्यान रखना, वरना फ़िर से मैं कोई ओर समझ कर दौड़ती आऊं पर तुम्हें ना पाकर निराश होकर वहीं से लौट जाऊं !
आज कल हर दस्तक पर दरवाजा खोलने नहीं जाती मैं,
बल्कि सोचती हूं, अगर प्यार है तो रूकोगे, कुछ लम्हा मेरा इंतजार करोगे वहीं, बिना थके, ठीक उसी तरह जैसे मैंने किया है तुम्हारा, शायद आधी उम्र या लगभग पूरी !
तुम, हां तुम,
तुम मेरी जिंदगी का एक हसीन हिस्सा हो, एक किस्सा हो, जिसका जिक्र नहीं हुआ आज से पहले !
तुम एक पहलु हो जो मेरे समझ के परे है !
तुम पर एक कविता लिखुं या लिखदु एक पुरी किताब शिकायतों और नाराज़गी से भरी क्योंकि तुम्हारी हंसी ठिठोली किसी ओर के साथ बर्दाश्त नहीं कर सकती मैं, तुम सिर्फ मेरे हो, किसी ओर के साथ तुम्हें बांट नहीं सकती मैं !
पर हमेशा ऐसे ही हरफनमौला रहना और हां जब भी मेरे पास आओ तो याद रहे की मुझे तुम्हारी दस्तक का अहसास हो।