दस्तक
दस्तक
क्यों अकेले में मुझको लगता हैं कि
आज भी तेरे यादों की दस्तक सुनाई देती हैं
रह रह लगता हैं कि धड़कन दस्तक दे रही है
बीती यादो की कुंडी बन कर खटका रहा कोई
दस्तक एक भूली बिसरी सी….
समझ नहीं आता कि क्यो मेरे साथ यह हो रहा है
ऐसा लगता है शायद तुम कही पास ही तो हो
बारबार मानो तुम ही दरवाज़े पे दस्तक दे रहे हो
कौन आया है ? देखूं जरा यही सोच भागती हूँ उठ
दस्तक एक भूली बिसरी सी….
उठकर जारी दरवाजे तक आपको पाने की चाहत में
भरम में जी रही हूँ कि आप के अलावा कोई नही
दस्तक देने को यही सोच
दरवाज़ा खोलने चलती हूँ
बाहर निकलकर आसपास देखूं तो छलावा मात्र ही
दस्तक एक भूली बिसरी सी….
कोई दिखाई नहीं देता है मुझे दरवाजे पर
लौट आती हूँ उस अंधेरे से जो यादों में डूबा है
और खुद हो छलावे से छला ही देखती हूं मैं
शांत हो महसूस करती हूँ स्वयं को यादों में खोया
दस्तक एक भूली बिसरी सी….
पर मेरा मन आज भी विश्वास में जीता है कि
आओगे जरूर एक दिन मेरे दरवाज़े पर दस्तक को
दस्तक होगी और मैं दौड़ती हुई आऊंगी
सामने देखूंगी आपको अपने स्वयं से आलंगित
दस्तक एक भूली बिसरी सी….