दशानन
दशानन
" होंगे दशानन भी हैरान
देखकर इंसान के वेश में शैतान "
बुराई कुछ कम न थी
अहंकार से परिपूर्ण था
सौंदर्य, धैर्य, कांति..
सर्वलक्षणों से युक्त था
महाज्ञानी, महादेव भक्त से भूल हुई
समझा ललकारा है किसी मानव को...
उस युग में श्रीराम से विजय हुई धर्म की
इस युग में कौन राम है ?? जो मार सके
अपने भीतर बसे उग्र दानव को... !!
वो क्रूर थे, तो क्रूर सही
इस कलयुग में कोई भाई उतना शूरवीर नहीं
जिसने अपहरण किया वैदेही का..
वासना नहीं ईर्ष्या थी
एक बहन के स्नेही का..
अंत पता था उसे शुरूआत से
प्राण हारने से पहले हारा, अपनों के आघात से !!
दो युगों में बरकरार यही एक समानता है..
जो अपनों को छले, वो कल राजा हुआ
और वही आज भी विजेता है..
रावण बनना तो मुमकिन नहीं किसी के लिए
पर
अपनत्व का मुखौटा सजाए
हर घर में एक विभीषण पलता है.. !!
जिसने कोई सीमा लांघी नहीं मर्यादा की
मत जान लेते, उस पर तोहमत लगाने से पहले..
दामन मैथिली का बेदाग रहा
जो छुआ नहीं उसे अनुमति से पहले..
सीता ज़्यादा सुरक्षित थी उस युग में..
रावण को अग्नि में फूंकने वालों
यहाँ हर रोज़ एक सीता
सती हो जाती है, हवस की आग में..!!
कोई तेरी श़ह में पल रहा है
कोई तेरी गली में पनप रहा है
हर मोहल्ले में एक रावण
बेखौफ़ भटक रहा है।
पहले बना कर, फिर दहन कर पुतले का
इतनी आतिशबाजियाँ, शोर कर रहे हो
इंसानी ज़हन में और इर्द-गिर्द अपने
न जाने कितने रावण को पनाह दे रहे हो..
और एक कागज़ के रावण को जलाकर
खुद को योद्धा कह रहे हो...!!
"आज होंगे दशानन भी हैरान
देखकर इंसान के वेश में शैतान।"