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Pooja Chandrakar

Abstract

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Pooja Chandrakar

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स्त्री: पूरी या अधूरी

स्त्री: पूरी या अधूरी

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443


कुछ अजीब सी बात है ना !!

मेरी नज़र में, मैं पूरी इतनी हूँ कि एक 

नई पीढ़ी को दुनिया में लाती हूँ

तेरी नज़र में, मैं अधूरी इतनी हूँ कि तेरे

नाम के बिना किसी को भी ना पहचानी जाती हूँ

तूम हो कौन देने वाले

अधूरे या पूरे का खिताब...

चलो, फिर आज बराबर 

कर ही लें कुछ हिसाब किताब...


तूमने तो कहा था, मेरा सब कुछ तेरा है

पर... घर की बाहरी दीवार पे

तेरे नाम की तख्ती जो सजी है

ना वो मेरा है.. ना हमारा है.. 

वो तो बस.. तेरा है

इस चार दीवारी के भीतर 

ज़िम्मेदारियों का ज़िम्मा उठाकर

बेशक.... मैं बहू तो पूरी हूँ

लेकिन मालकिन अधूरी हूँ।।


माना अधूरी हूँ तेरी जिंदगानी की

निशानी के बिना

फिर, तू पूरा कैसे हुआ मेरे होने की

निशानी के बिना

जो धागा कल तक कफ़स था

हर पल उसे गले से लगाए रखा है

क्यूँ न मेरे नाम के पहले अक्षर की अंगूठी

तू भी अपने हाथों में सजाए रख ले

चलो ये ज़िद भी पूरी, तेरे नाम का श्रृंगार कर

बेशक.... मैं सुहागन तो पूरी हूँ

लेकिन पत्नी अधूरी हूँ।।


तुम्हें पत्नी से प्रेयसी का प्यार चाहिए..

मुझे उस प्रेम में, ओस की बूंदों सा ठहराव चाहिए..

मुझे पति में दोस्त चाहिए..

शुबहा की आँधी जिसे हिला तक न पाए

रिश्तों की जड़ें इतनी मजबूत चाहिए..

कल दिल दे बैठे देखकर जिसे खुली ज़ुल्फ़ों में

आज सिमटे बालों में गृहस्थी की 

हर उलझन सुलझा रही है

बेशक.... वो मालकिन तो पूरी है

लेकिन प्रेमिका अधूरी है।।


जिस औरत को तूने पाया है

जिस्मानी मोहब्बत का हक जिस पर जताया है

इस भ्रम में मत रहना कि 

उसने तहे दिल से तुम्हें अपनाया है

अपनी सहूलियत व शर्तों के

मुताबिक जिसको चाहा तूमने

बेशक.... वो पत्नी पूरी है 

लेकिन स्त्री अधूरी है।।


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