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Satya Narayan Kumar

Abstract

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Satya Narayan Kumar

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दर्शन

दर्शन

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मेरे अंत:करण के सम्मुख

एक ज्योतिर्मय चादर-सी लाकर।


दैनिक जीवन की सारी तुच्छता बिल्कुल

ओझल हो जाती है तेरी दर्शन पाकर।


सत्या का मन चाह रहा अपनी

परिपूर्णता तेरी गाथा गाकर।


अचरज-भरे तेरे रूप को प्रकट कर दे,

कि धन्य हो जाऊं तेरे दर्शन पाकर।


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