Vijay Kumar parashar "साखी"
Abstract
कितना ये दर्द मुझे तू तड़पायेगा
कितना तू दिल से लहू बहाएग
एक दिन तुझे दर्द हारना ही होगा
कितना तू साखी से टकरायेगा
टूटना दर्द तेरे नसीब में लिखा है
ये साखी तो पत्थर का बना है,
जितना तू मुझसे मिलने आयेगा
उतनी बार चकनाचूर होकर जायेगा
"गोवंश पर अत्...
"चमत्कार"
"दौर मुफ़लिसी ...
"दुआ-बद्दुआ,
"आंटा-सांटा"
"सिंदूर"
"बरसात"
"शांत और स्थि...
"दोगले इंसान"
टूटेगा ना धागा फ़िर से, कवि मन मेरा जागा फ़िर से। टूटेगा ना धागा फ़िर से, कवि मन मेरा जागा फ़िर से।
अजब रिवाजों वाला ही, है इस सारे जग का रोग, चलती को कहते हैं गाड़ी, अजब रिवाजों वाला ही, है इस सारे जग का रोग, चलती को कहते हैं गाड़ी,
जो सब कुछ त्याग कर नर्स बन जाती हो तुम ! जो सब कुछ त्याग कर नर्स बन जाती हो तुम !
जब तक न लिखूँ कोई कविता, दिवस अधूरा मन रूठ रहा है। जब तक न लिखूँ कोई कविता, दिवस अधूरा मन रूठ रहा है।
रह ही जाती हैं ज़िंदगी में अक्सर कुछ अधूरी दास्ताँ। रह ही जाती हैं ज़िंदगी में अक्सर कुछ अधूरी दास्ताँ।
जिसे पाने की चाहत है बड़ी क़ाबिल है वो लड़की। जिसे पाने की चाहत है बड़ी क़ाबिल है वो लड़की।
नवदुर्गा के ,माना गया ,होते हैं नौ रूप। होते हैं नौ भोग भी, जैसे अलग स्वरूप।।१।। नवदुर्गा के ,माना गया ,होते हैं नौ रूप। होते हैं नौ भोग भी, जैसे अलग स्वरूप।।...
लिखकर ही मिलता इसके जड़ चेतन को करार है लिखकर ही मिलता इसके जड़ चेतन को करार है
फिर से आज बनाना होगी खोई हुई पहचान को। याद करें हम.... फिर से आज बनाना होगी खोई हुई पहचान को। याद करें हम....
हाँ ! मैं मुट्ठी भर रेत से इक मकान बनाऊँगा । हाँ ! मैं मुट्ठी भर रेत से इक मकान बनाऊँगा ।
ऐसा अक्सर बेटियां ही क्यूँ सुनती। क्यूँ बेटियों की जिंदगी आसान नहीं होती। ऐसा अक्सर बेटियां ही क्यूँ सुनती। क्यूँ बेटियों की जिंदगी आसान नहीं होती।
जीवन में सूनापन मगर मन में हलचल सी है, ठहर गयी धरती पर मन में कम्पन सी है, जीवन में सूनापन मगर मन में हलचल सी है, ठहर गयी धरती पर मन में कम्पन सी है,
जहां प्रेम ही इतिहास है, क्यों लहू ये गिरता यहां, जहां प्रेम ही इतिहास है, क्यों लहू ये गिरता यहां,
रात सुरमई आसमां ने बिखेर दिए ज़मीन पर जैसे मोती खनखनाकर! रात सुरमई आसमां ने बिखेर दिए ज़मीन पर जैसे मोती खनखनाकर!
जब अपनी आवाज़ ऊँची करते हो कद अपना नीचा कर लेते हो। जब अपनी आवाज़ ऊँची करते हो कद अपना नीचा कर लेते हो।
मगर जीवन मिला नहीं बस मिट जाने को। हैं ये उपवन कुछ सौरभ बिखराने को। मगर जीवन मिला नहीं बस मिट जाने को। हैं ये उपवन कुछ सौरभ बिखराने को।
नहीं वो तो अपने घूँघट में ही छुपकर रह गयी। नहीं वो तो अपने घूँघट में ही छुपकर रह गयी।
पिया परदेश में है ए सखी उनको मनाऊँगी। पिया परदेश में है ए सखी उनको मनाऊँगी।
वैश्विक गरमी प्रभाव। उसी का चले पेंच दॉंव।। वैश्विक गरमी प्रभाव। उसी का चले पेंच दॉंव।।
तो फिर काट दो हाथ मेरे, जोड़ दो हल में किसी ताकि वे पकड़ लें हाथ खेत जोतने वाले के। तो फिर काट दो हाथ मेरे, जोड़ दो हल में किसी ताकि वे पकड़ लें हाथ खेत जोतने वाले...