दोहरेपन का शिकार
दोहरेपन का शिकार
इठलाओ और इतराओ भी,
क्योंकि करोगे भी क्या?
अन्तिम तो बस यही उपाय है।
लेकिन व कसक,
जो नहीं हुआ है पूरा,
व तुम्हें सोने ना देगा।
तुम बेबस और लाचार होकर,
ठगा सा देखता रहोगे।
ये तेरा ही कहानी है,
ऐसा नहीं है,
अधिकतरों का यही रोना है।
मुझे आश्चर्य होता है,
तुम्हें-उन्हें देखकर,
बड़े बनते हो,
ठाठ और बाठ भी,
खूब रखते हो।
लेकिन, फिर-फिर-फ़िर,
तुमने जो चाहा,
वह पूरा नहीं हुआ।
क्योंकि तुम भी उसी परिपाटी,
के शिकार हो,
जो कई सदियों से,
चलता आ रहा है।
इसलिए दोहरेपन की भावनाओं,
से बाहर आओ।