दोहे (गुजरा कल)
दोहे (गुजरा कल)
गुज़रा कल है खो गया,
रथ सा भागा पाँव।
बनी रफ़्तार देखिए,
बाढ़ बहे है नाव।।
खोया वैभव मिल गया,
बीता वक़्त न पाय।
कण-कण के उपयोग से,
बटुआ भरता जाय।।
कल निंदा करते गया,
कलह किया है शोर।
बैठ सोच ले आज तू,
जायेगी यह भोर।।
गुज़रा कल फिर ना मिले,
करें वक़्त पर काज।
बात ज्ञान की तो करें,
जहां करे फिर नाज।।
वक़्त बीत के कल हुआ,
कल कल कहते हाल।
गुजरा कल फिर ना मिला,
बीते सालों साल।।
ये जीवन को जानिए,
जन्म के चार भाग।
प्रथम में विद्या पाते,
द्वितीय में धन राग।।
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परहित तृतीय में करें,
कमाय पुण्य प्रताप।
तीन चरण कुछ ना किये,
चतुर्थ बनता श्राप।।
सुन मन के उत्साह में,
बनते सारे काम।
फर्ज सभी पूरे करें,
तो होता है नाम।।
मन के जीते जीत है,
मन के हारे हार।
मन से ही खुशियाँ मिले,
पा मन से सत्कार।।
सच मन के उत्साह में,
जगत लगे रंगीन।
आलस्य मिटा देखिए,
काम में हो प्रवीन।।
मनुज उत्साह राखिए,
मन से करिये काम।
उत्तम बन चमके यहाँ,
काम से होय नाम।।
मेहनत जो यहाँ करें,
भरके मन में आस।
चेहरे में ख़ुशी दिखे,
रुचि रहे फिर पास।।