दिले नजरिया
दिले नजरिया
हमने उनको सारा हक, जब अपने जागीर पर दे दी
उन्होंने आदर से एक माला तब हमारे तस्वीर पर दे दी
इस दुनियां में लोगों दीया न बगैर तेल के जलता है
इस जीवन की पहिया भी अक्सर न बैर के चलता है
जितना प्यार दियाओरों पर उतना गम हमे तकदीर ने दे दी
शिकायत सबकी रही रब से हमने क्या गुनाह किया
पड़ोस घर बांटी खुशियां, अपने घर गम पनाह दिया
मन्नत की आश में घर को कर अँधेरा,हमने हर दीया मंदिर में दे दी
क्या मजाल की हम भी दुनिया में कुछ नाम कर जाते
आज न कोसते खुद को, न तोहमत किसी पर लगाते
शर्म से बेहया हम न हो जाएँ,
हमने सारा दोष हाथ के लकीर पर दे दी
नजर और नजरिया का बस यहीं एक कसूर है यारों
असीम दिल की लालसा ,अनचाहा न मंजूर हैं यारों
वरना अमीर, नवाब जो न पा सके सुकून
वो एक फकीर ने दे दी।