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Sriram Mishra

Abstract

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Sriram Mishra

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दिल

दिल

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 खता तो दिल से होती है

और दोषी पूरा शरीर होता

लेकिन मैंने पढा है जनाब

शरीर दो किस्म से बना होता है


एक ऐच्छिक एक अनैच्छिक

बताओ फिर किसको दोष दूँ

अब एक काम करो तुम

दुश्मनी केवल दिल से ही रखो


क्यों प्यारे से चेहरे को दोष दो

चेहरा कुसूरवार बिलकुल भी नहीं 

मैंने जो कहा सही कहा

विश्वास न हो ,हकीम से पूछ लो


कि दिल का धड़कना और रूकना

हमारे बस में बिलकुल भी नहीं

हाँ मन गलत हो सकता है

पर ये भी तो बदलता है साहब


पर तन तो वही रहता है

फिर तन को क्यों दोष दो

कुल मिलाकर मान लो

गलती केवल दो करते हैं


तो सजा पूरे शरीर को क्यों

अब चलो मुस्कुरा दो जनाब

क्योंकि दोनों को ठीक करने की

दवा भी यही और दुआ भी यही। 


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