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Sumit. Malhotra

Abstract

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Sumit. Malhotra

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दिल पे किसका ज़ोर

दिल पे किसका ज़ोर

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दिल पे किसका ज़ोर चलता है,

ये हमें तो कागज़ी बातें लगती।


अब ना लैला-मजनूं जैसे यहाँ,

धोखा बेवफ़ाई और दग़ा यहाँ।


नज़र न आता हमें सच्चा प्यार,

हर बार प्यार में मिला दग़ा यार।


कहते हैं कि प्यार किया न जाए,

अपने आप ख़ुद ही तो हो जाए।


धन-दौलत एशो-आराम शोहरत,

इसके लिए ज़्यादातर लाभ चाहे।


दिल मासूम नादान बेचारा हमारा,

खिलौना समझ के खेलते हैं जाएं।


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