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Baman Chandra Dixit

Abstract

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Baman Chandra Dixit

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दिल की सुनता हूँ

दिल की सुनता हूँ

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कागज़ के सीने में आवाज़ उकेरता हूँ,

लकीर पे लकीर लिख तस्वीर निखारता हूँ।

धुप्प अंधेरे में निहार के खुली आसमाँ को

चुप्प खामोशी से आलाप करता हूँ।

अपनी मन की मानता हूँ मैं

दिल की सुनता हूँ।


बुनता हूँ नित नया ख्वाब सुहाना

चुनता हूँ  राह नया  छोड़  पुराना

चमक  चुराके चाँद सितारों से कभी

दिल की दीवारों पे आसमाँ लिखता हूँ

अपनी मन की मानता हूँ मैं

 दिल की सुनता हूँ।


गुलाब की गालों में बूंदे ओस की चमक

घास के बालों में लाली किरणों की झलक

हाथेली में लीये लाल उगते सूरज को

अलविदा रात ,सुबह आदाव कहता हूं

 अपनी मन की मानता हूँ मैं

 दिल की सुनता हूँ।


कुहासों से झांकती किरणें पकड़ कर

ठंडे हथेलियों से माचीस रगड़ कर

गीले सूखे पत्ते टूटे लकड़ीओं के साथ

जाड़े की अंगोठि में सूरज उगाता हूँ

अपनी मन की मानता हूँ मैं

 दिल की सुनता हूँ।


नरम किरणों के साथ बेफ़िक्री मिला कर

बे-सब्र ज़माने से कुछ लम्हें चूरा कर

पत्तों से छान कर सूरज की रोशनीओं को

धरती की आँचल पे चित्र लेखा लिखता हूँ

अपने मन की मानता हूँ मैं

 दिल की सुनता हूँ।


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