दिल की पटरी से धड़धड़ाती ट्रेन
दिल की पटरी से धड़धड़ाती ट्रेन
अभी अभी धड़कनों की पटरी से,
एक सुपरफ़ास्ट ट्रेन
धड़धड़ाती हुई निकल गई है !
सुन्न सी स्थिति है,
और सोच रही हूँ
कि यदि मैं यह स्थिति बांटू,
तो तुममें से कितने आज भूखे रह जाएंगे ?
कितनों के हाथ दुआ में उठेंगे ?
दर्द के समयात्री बन
कितने लोग किसी व्यक्तिविशेष को गाली देंगे,
कितने लोग उस व्यक्तिविशेष के बचाव में
चीखेंगे ?
और फिर एक राजनैतिक मुद्दे का विस्फोट -
सबको आपसी शत्रु बना देगा !
किसी के दर्द
किसी के सन्नाटे,
किसी के खाली घर
और खाली सी हो गई ज़िन्दगी से
किसी को कोई मतलब नहीं होता,
भारत माता की जय बोलते हुए
एक बहुत बड़ा समूह
हृदयहीन हो गया है।
लड़ाइयां पहले भी हुई हैं,
लेकिन तब,
किसी अजनबी का दर्द भी अपना था,
मंदिर, मस्ज़िद, गुरुद्वारा ...
हर तरफ,
सब हाथ जोड़े खड़े थे,
सुन्न थे,
क्योंकि,
दिल की पटरी से धड़धड़ाती ट्रेन,
सबके दिलों के स्टेशन से होकर
सर्राटे से निकलती थी।