"दिल की छांव"
"दिल की छांव"
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यादें हैं तेरी कहीं इसी "दिल" की छांव में
इंतज़ार उन्हें भी है मेरा शायद इस गांव में
यूँ बेखबर भटकते रहे पाने की चाह में
मंजिले यूँ कांटे भरी जख्म भरी राह में
तेरे चाहत में पड़ा ये "दिल" मानता नहीं
अब पूरी होती कहां रातें बिना आह के
तमन्ना है मेरी यही लग जा तू दिल से मेरे
बैठकर आया हूं मैं समुंदर पार उस नाव में
शाही है इंतज़ाम बस उनके आने की है देर
सजी हैं ये राहें बेशक उनके आने की चाह में
दिल तो दिल है इस दिल को संभाला है मैंने
ख्वाबों, ख्यालों में नज़र आते थे वो रात में।