STORYMIRROR

Masum Modasvi

Abstract

2  

Masum Modasvi

Abstract

दिल के हाथों हो गये मजबूर

दिल के हाथों हो गये मजबूर

1 min
2.9K


किस क़दर जलवा नुमाई हो गई

आज कुछ बस में खुदाई हो गई।


उनको जी भर के अभी देखा नहीं

फिर भी हमारी आशनाई हो गई।


दिल के हाथों हो गये मजबूर हम

जिंदगी अपनी थी परायी हो गई।


कुरीतियों ने कर दिया मखमुर सा

दोस्ती जब बढ़ कर सगाई हो गई।


हम जी रहे रंगीनियों में डुबकर

वस्ल की जो रस्में अदाई हो गई।


अब नहीं भूलेगा ये लम्हा कभी

हाथ की मेंहदी हीनाई हो गई।


देखिये बज्में तरब की सब रोनकें

प्यार की मासूम सगाई हो गई।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract