दिल ढूंढ रहा है
दिल ढूंढ रहा है
दिल ढूंढता है
सुनती रही ये गाना
के बार,
और तलाशती रही नजर
हर चेहरे में
तुम ही को हर बार..
जानती थी तुम नहीं हो
फिर भी
बेबस इस दिल से
ढूँढ रही हूँ
तुम्हीं को हर जगह हर बार...
कररही हूँ कोशिश
दोस्तों के साथ मन लगाने की
मगर चुपके से दिल में
आस है तेरे मिल जाने की..
नहीं है फिक्र
न ही प्यार है तुम्हें
तभी तुम आये और चले गए
मेरी मुहब्बत को
मेरे गीले बालों की तरह
तुम झटक गए..
भूल गए सब जैसे मैं कोई
अरुचिकर उपन्यास थी
जिसे आधा भी न पढ़ सके
औऱ रख दिया किनारे
कहकर कि बकवास है..
काबिल हूँ पूछा था,
हाँ मैं कुछ कह न सकी
देख रही थी तुमको
नजर भी न मिला सकी,
तुमने तो कह दिया काबिल हो तुम
और मैं कुछ न कह सकी..
ढूँढ रही हूँ वो नजर जिसने
कहा था काबिल हो,
और वो दिल भी,
जिसने बस यूं ही मुझे झटक दिया।

