गुलशन
गुलशन
गुलशन में हमारी तुम ही महका करते थे,
याद में तेरी कभी हम भी बहका करते थे।
हर एक अदा से तेरी प्यार हो जाता था,
हर इक नाज़ नखरा तेरा हल्का लगता था।
मेरे गुलशन का इकलौता हंसी फूल थे तुम,
जिसे देख जिंदगी पाते थे वही आस थे तुम।
सोचा था यूँ ही रहेंगे तुम्हारे दामन में सिमटकर,
जब भी मिलोगे लग जाएंगे गले हम कसकर।
सारे गम बांट लेंगे तेरे गले लगकर किसी रोज,
हँस लेंगे फिर भले ही मिले काँटों की सेज।
न जाने कहा खो गया अल्हड़पन का जो दौर,
वो जी लेंगे तुम संग रहेंगे जब हम तेरी ठौर।
मगर रब वो देता नहीं जो हमको हो पसन्द,
वो करता है वही जिसमें सबकी हो रजामंद।
खो दिया तुमको मगर सोचते हैं पाया कब,
माना अपना सबकुछ मगर तुमसे पाया कब।
हमारे लिए तुम दुनिया तुम ही जान हो गए,
न जाने क्यों हम आज तुमसे अनजान हो गए।
