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Sunita Mishra

Abstract

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Sunita Mishra

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दीप कहाँ जलता है

दीप कहाँ जलता है

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तिल तिल कर बाती बढ़ती

अन्धकार से पल पल लड़ती

घूंट घूंट भरती तेल

सांस में दीप कहाँ जलता,

बाती है जलती।


गहन तिमिर,

पथ अन्धियारा जलती

जाती कर लौ उजियारा

चाँद छुपा रात की गोदी में

बाती करती जग रोशन सारा।


अमर दीप, बाती ने जीवन हारा

सब दीपक का गुण गाते

बाती का त्याग समझ न पाते।


दीपक को जीवन देकर

प्राण त्यागती हँसते हँसते।

दीप कहाँ जलता,

बाती है जलती।


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