धूम्रपान निषेध
धूम्रपान निषेध
नया नया वो शौक था, नयी नयी उड़ान थी।
नये नये वो दोस्त थे, नयी नयी वो शान थी।
वो हॉस्टिलों की महफ़िलें, शराब धूम्रपान की।
कभी दबाव दोस्त का, कभी थी बात मान की।
जो सिलसिला शुरू हुआ, धुएँ में हम तो खो गए।
पुरानी सीख भूल कर, लिए थे पाठ सब नए।
शरीर खोखला हुआ, अनेक रोग हो गए।
कि रोज खाँस खाँस कर, ये फेफड़े भी रो गए।
सुजीत एक मित्र था, सदैव साथ था मेरे।
उसी ने सीख ठीक दी, कि छोड़ ये व्यसन तेरे।
ये सिगरिटें ये बीड़ियाँ, नशे की लत लगा रहीं।
हरेक कश में मौत को, ये और पास ला रहीं।
नसीब ठीक था तो हम, समय से ही सुधर गए।
जो धूम्रपान में फँसे, वो जीते जी ही मर गए।
ये ज़िन्दगी है कीमती, समझ गए ये बात हम।
नशे में इसको व्यर्थ कर, न ज़िन्दगी करो ये कम।
करोड़ लोग पाश में, फँसे हुये बँधे हुये।
कई तो अस्पताल में, दिनों को रोज़ गिन रहे।
चलो करें ये फैसला, मेरा यही विचार है।
निषेध धूम्रपान हो, ये वक़्त की पुकार है।