धुंधला नशा
धुंधला नशा
हर रोज़ आते हैं तेरी चौखट पे
हर रोज़ करते हैं कितने कसमें वादे
ये जाम ना पिएंगे दुबारा
बुरी है ये लत खुद को है समझाता
मद मस्त आँखोंको देख तेरी
नशा का चढ़ता जाए पारा।
कहावत पुरानी है
फिर भी लाख जुबानी है
दर्द ए आशिक की दबाई है
एक दारू की बोतल और जाम
पलमें स्वर्ग कि सैर करती है।
कोई कहे बुरी है
कोई कहे अच्छी है
एक जाम लगाके तो देखो
बुरी में अच्छी और अच्छी में बेहतरीन है।
महफिल सजी हो और जाम ना हो
जैसे गुलाब का पेड़ हो और गुलाब ना हो।
दुआ ना काम आए जब दवा ना
काम आए
दो घुट सोम रस पीलो के ये पल दुबारा ना आए।
यही सब बातों ने जकड़े रखा है
अंधेरा है क्योंकि आँखों को बंद रखा है
कहीं नाला तो कही किसी रास्ते के किनारे
गिरता पड़ता इंसान को चारों और स्वर्ग लगता है।
है झूठ में जीता राहा तू
आंखे खोल तो जरा
धुन्दले नशे में खुद को भूलता रहा
एक बार होश में रहके तू देख तो जरा।
सब ढकोसला है
ढकोसला है सारी बातें
नशे में हुआ है किसका भला
अब छोड़ भी दे तू करना नशा
जीले तू हर एक पल होश से भरा
क्या पता पलट जाए
तेरी किसमत
पलट जाए तेरा पासा।