धरती पुकार रही
धरती पुकार रही
हाय कहा मानव अभी समझने को है तैयार ।
क्या कर रहा है धरती मां का चीर हरण।
धरती पुकारती निसहाय हो के।
पहुंची है पुकार उस विधाता के पास।
तब किया शिव ने तांडव
हुआ है सीना छलनी धरती मां का।
फिर बताओं किसे बतातीं बयथा अपनी
लिया रादौर रूप धरती ने
बन गयी अपने बच्चों के लिए ही रणचडी।
वन उजड़ा उपवन उजाड़े उजाड़ दिया
धरती का हर कोना कोना।
तरक्की की आड़ में किया मानव ने
धरती मां का सीना छलनी
एक नया सवेरा लाने की ज़िद में
करता रहा धरती मां का चिर हरण
कितने किये जतन धरती मां ने
कहीं आंधी आई तूफान आया
कहीं पड़ा सुखा
तब भी समझ ना आया मानव को
आधुनिकता के नाम पे करता रहा
धरती मां का सीना छलनी
करोड़ों की संख्या धरती मां के सपूतों की
पर हाय धरती मां का सीना छलनी
करने में लज्जा ना आई।