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राही अंजाना

Abstract

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राही अंजाना

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धरती परिवार

धरती परिवार

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जिस्म ऐ माटी में इस रूह को डालता कौन है,

बनाकर इन पुतलों को ज़मी पर पालता कौन है,


मिलाकर हवा पानी आसमाँ आग पृथ्वी को, 

वक्त वक्त पर ख़ुशी और गम में ढालता कौन हैं, 


बचपन से बुढ़ापे तक के इस अनोखे सफ़र में, 

ठोकर जब कभी लगे तो वो सम्भालता कौन है, 


धर्म में बताया बुजुर्गों ने भी समझाया है हमको,

धरती ही परिवार है इस बात को टालता कौन है, 


तमाम नस्ल के रंगों में रहगुजर उस "राही" को,

जानने की चाहत में अब यूँही खंगालता कौन है।। 



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