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Kalyani Nanda

Abstract

4  

Kalyani Nanda

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धरती और पर्यावरण

धरती और पर्यावरण

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नीला आकाश, घने जंगल ,

मंद मंद चलती ये हवाएँ ,

शाम, सवेरे गुंज उठे ,

पंछियों के कलरव ,

वसन्त के बहार,

सावन का फुहार,

तन, मन शिहराए शीत लहर,

धरती का शृंगार है, ये पर्यावरण ।


करे रक्षा हमारी,

शुद्ध वायू, शुद्ध परिवेश ,

धरती पे हरियाली छाए ,

हँसते हैं बगियाँ , रंग, बिरंगी फूलों से ,

नदियाँ , झरने गीत सुनाए ,

हरे भरे पेड़ , पौधे पर्यावरण का सदा साथ निभाए ।


जंगल ना रहे, पेड़ ना रहे,

कांक्रीट का जंगल इन्सान बनाए,

प्रदूषित वायू , धूम से भरा नभ,

प्रदूषित ये वातावरण,

धुआँ धुआँ सा हो गया ये जीवन ,

जागो हे मानव, अब तो जागो ,

निज परिवेश का रखो ध्यान,

करो रक्षा पेड का, शुद्ध करो वातावरण,

प्रदूषण बिहीन होगा पर्यावरण ,

करो एक सुन्दर, खुशहाल संसार का निर्माण ।




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