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Kawaljeet GILL

Abstract

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Kawaljeet GILL

Abstract

धोखा ही धोखा है

धोखा ही धोखा है

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जाने कैसा ये जमाना आ गया है

हर और धोखा ही धोखा है

अपने दिल को भी संभलकर

रखना पड़ता है मुझे पैसो की तरह

शीशे की तरह नाजुक है मेरा दिल

हर कोई पत्थर मारने को

जाने क्यों बेकरार है।


अपने दिल को संभालू

तो संभालू कैसे

जाने कब ये बहक जाए

और किसी पर आ जाये

भरोसे के लायक कम है लोग

आज इस जहां में

हर और तो बस धोखा ही धोखा है।


जाने क्यों मोहब्बत के

नसीब में हमेशा तन्हाइयाँ ही होती है

जाने क्यों प्यार को मुकम्मल

जहान नहीं मिलता

जाने क्यों प्यार की

दास्तानें अधूरी रहती है

काश इन सवालों के

जवाब मिल जाये तो

प्यार का नसीब कुछ और ही हो जाये।


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