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Arpit Sharma

Tragedy

3  

Arpit Sharma

Tragedy

धंधा

धंधा

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ये जिस्मफरोशी कोई शौक़ नहीं है

जनाब, इससे मेरा घर चलता है

तुम्हारे लिए होगा ये धंधा,

मेरे घर पे बैठे मेरे बूढ़े माँ-बाप का

पेट इस से ही पलता है


मेरे घर में भी होती दीवाली और

शायद होली के रंग भी होते

जो ज़माने के क़ायदे यूँ इतने

बेरहम ना होते

मुझे लोग ना जाने किस किस

नाम से बुलाते हैं

फिर चन्द पैसे देकर अपने दिल को

लुभाते हैं पर ज़माने को क्या फ़र्क

क्यों पड़े, यहाँ तो हर रोज़ यही चलता है

ये जिस्मफरोशी कोई शौक़ नहीं है

जनाब, इससे मेरा घर चलता है


कभी मेरा भी मन था कि

कोई मुझसे भी इश्क़ करे

और मेरी झोली को भी

कोई ख़ुशियों से भरे

पर उजड़ गया हर सपना जब

उस दरिंदें की नज़र मुझ पर पड़ी

और जल गई हर उम्मीद मेरी जब

मेरी बर्बादी मेरे सामने थी खड़ी

मेरी इज़्ज़त का क़ातिल आज भी

सीना चौड़ा कर चलता है और मेरा

इज़्ज़त से रहना भी ज़माने को खलता है,

ये जिस्मफरोशी कोई शौक़ नहीं है

जनाब, इससे मेरा घर चलता है


मर चुकी हूँ मैं अंदर से, बाहर

बस ये साँसें चल रही हैं

बस बूढ़े माँ-बाप को देख

मेरी मौत टल रही हैं

अब कोई सपने नहीं है मेरे,

ना किसी से कोई उम्मीद बची है

जिन हाथों में रचनी थी मेंहदी,

आज उनमें दर्द की कहानी रची है

बस मिल जाये मुझे इंसाफ़

एक दिन ये उम्मीद है क्योंकि

सुना जो जैसा बोता है,

वैसा ही फलता है,

ये जिस्मफरोशी कोई शौक़ नहीं है

जनाब, इससे मेरा घर चलता है

तुम्हारे लिए होगा ये धंधा,

मेरे घर पे बैठे मेरे बूढ़े माँ-बाप का

पेट इस से ही पलता है


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