देवी...
देवी...
सुनो देवी नहीं बनना मुझे तो बस औरत ही रहने दो,
मुझे मेरे मन की करने दो मुझे मेरे मन की कहने दो।
फैला सकूँ पंखों को अपने भर सकूँ परवाज़ मैं भी,
हुनर और इल्म की दौलत मेरे हिस्से में भी रहने दो।
नदियों-सी लहराती बह सकूँ मैं भी अपनी डगर पर,
सुनो ना बाँधों रिवाजों में मुझे अब स्वच्छन्द बहने दो।
देखो मुझ में भी हैं शामिल कितने ही कायनाती लम्हें,
मुझे भी अपने हिस्से का आसमाँ अपने आप चुनने दो।
मैं खुद ही नाप लूँगी गहराइयाँ, ऊँचाइयाँ जीवन की,
है मुझ में हौंसला इक बार मुझे साबित तो करने दो।
मिली है ज़िन्दगी इक बार ही, है गुज़ारिश तुमसे "मीन"
चार लोगों का वो फ़लसफ़ा, चलो छोड़ो भी हँसने दो।
