देश की आन
देश की आन
वादे बहुत से वो भी करके आए थे।
घर जल्दी आएँगे, गुड्डी लिए गुड़िया,
मुन्ने की कार साथ लाएंगे।
किस को पता था कि वो,
आज ही अपनी माँ का कर्ज चुकाएंगे।।
उनके भी सपने थे, अपने थे।
पर तुम ना जान पाए।
घर पर अभी कुछ लोग बैठे हैं आस लगाए।
वो तो चले गए, अपनी माँ की गोद में।
अब कौन उनको उस नींद से जगाए।।
कुछ घर की आज रोशनी आज अंधेरों में बदल गई।
कुछ की चूड़ी बिंदी आज किसी से रुठ गई।।
फिर वो तिरंगे की शान के लिए मुस्कुराए है।
किसी का आंचल छोड़ आज,
तिरंगे में लिपट गए वो।
अपनी माँ की ख़ातिर आज उसकी गोद में सो गए।
कब तक ये अत्याचार होगा।
कब तक होगी इस पर सियासत।।
क्यों तुम अपने ही भाइयों को मार रहे हो।
क्यों तुम ये जान नहीं पाए।
वो बस,
अपनी माँ की आन बान और शान के लिए खड़े है।
ना उसको तुझसे को शिकवा ना ही कोई गीला है।
अभी भी समझ जाओ ये तुमको फँसाने की चाल है।
ये देश कल भी हमारा था, आज भी हमारा है।
दूसरों की ख़ातिर अपनों को ना रुलाओ।।
मान जाओ, मान जाओ
नमन उन्हें जो अपनी धरती मां पर क़ुर्बान हो गए।।
