देश का जवान
देश का जवान
माँ !
मैं तेरा जवान बेटा,
देश का नौजवान,
देश के लिए मर मिटने की खाई थी जो कसम,
आज वह दिन आया है, आज वह काम पूरा हुआ है ॥
पर मैं कहाँ बनना चाहता था कोई फौजी?
मैं तो चाहता था पड़ना लिखना
और करना देश का नाम रौशन
होकर एक वज्ञानिक या शिक्षक मात्र ॥
मुझको भी तो डर लगता है,
मुझको भी तो रोना आता है,
पर देश के आन के खातिर
था डटा अड़िग दुश्मन के आगे ।
नहीं दिखाया पीठ उसको,
खाया गोली सीने मे,
तेरे नाम के खातिर और
इस मिट्टी के शान के खातिर,
दे दी बलिदान अपने सपने को ॥
पर मेरे भी है कुछ सवाल उनको,
जो देश चलाने के नाम पर, और
सत्ता की कुर्शी के लिए
करते है झुटे वादे सब,
भरते मगरमच्छ के आंशु सब !
ये सच है की –
देश के लिए मर मिटना और
मातृभूमि के लिए अपना बिलेदान देना,
नही होता सौभाग्य सबका,
नही होता हिम्मत सब मे ॥
पर क्यूँ एक गरीब का बेटा
ही चुना जाता बलिदान के लिए?
इस देश मे क्यूँ नेता का बेटा
को नेता ही होना होता?
क्यूँ मंत्री का बेटा मंत्री ही चुनना होता?
मैंने तो किसी नेता के बेटे को
फौजी नही बनते देखा!
एक मंत्री का बेटा कैसे यह सब
कठिनाई सह पाता!
माँ, तुम जैसे लाखों माँओ को
सलाम करता यह देश भी,
तुम्हारी कोख को नमन करता
स्वर्ग के देवी देवता भी ॥
माँ, देश के बच्चों को क्यूँ नही बताया जाता
अमर बलिदान की वह गाथाए ?
जैसे शहीद हुये लाखों युवा-युवती,
वीर नेताजी सुभाष के पुकार पर
और लुटादी जान देश के आजादी के लिए ॥
क्यूँ मिटा दिया गया,
लाखों क्रांतिकारियों का वह पीड़ा
जो उन्होने हँसते-हँसते सब सह गए
और चुमली फाँसी का फंदा या चले गए कालापानी ॥
धूल मे मिटा दिया गया
भगत, आजाद और वीर सावरकर
के अनमोल विचारो को, और
दे दिया सारा श्रेय केवल दो लोगो को ॥
जिनको न पड़ी कभी मार
और न रहे भूखे जेल मे,
जिन्हे अंग्रेज़ भी ले जाते
विदेश घूमने विमानों मे ।
क्या यह आजादीसच मे मिली भीख मे हमे?
करने को अपमान उन अमर शहीदों का?
और बंदर बाँट की तरकीब हो कामयाब, और
हम बंटे रहे जाती, धर्म और भाषा मे!
यही कारण है क्या, जब भी जीती कोई युद्ध
और जीता कोई भूमि दुश्मन का,
लौटना पारा सब कुछ, और
खुद लौटे खाली हाथ ॥
हर फौजी के बलिदान और
शौर्य को किया अपमान
उन राज नेताओं ने,
चाहे हो लाहौर विजय, या हो
फिर पीर पंजाल
एक छर्ण मे दे दिया वापस
बिना सोचे की
देश ने खोया किनते नौ जवान ॥
सन इखत्तर की जंग मे जो
हमने पलटी बाजी, और हुआ
आजाद एक नया देश, पर
देखो वह भी भूल रहा हमारा भाईचारा
उनको भी लगता सारा बंगाल केवल उनका ।
हमसे अलग कर बांगला प्रदेश को
बनाना चाहता है बंगीस्तान ॥
इन्दिरा जी की बात क्या कंहे,
भूलकर सब शहीदों को,
सारा श्रेय खुद ले बैठी,
वह भी ठीक था पर
शांतिवार्ता के नाम पे
छोड़ दिये दुश्मन के ९६०००
सिपाही और, अपने ५५९ फौजीऑ को
दुश्मन के गिरफ़्त से भुलगई छुड़ालाना ॥
हमने देखि ऐसे राज परिवारों को
कुछ तो गरीबी के आलम से उठ के आए,
कुछ अँग्रेज़ो के चापलूसी मे राजपाट कमाये ।
आज सब महलो के वाशिंदे है, और
परिवार नवाबी मे रंग रंगीले है ।
उनके नाबाबजादो को
प्यारी देश की कुर्सी,
कोई नही चाहता फौजी बनना
कोई नही चाहता जान जोखिम ने डालना ।
माँ, फिरभी नि अफसोस मुझे
फौजी बनने का,
नही अफसोस अपनी गरीबी का ।
हम है तो, देश के लिए
एक फौजी है तैयार ।
हम है तो, देश के दुश्मन
को है ललकार ।
उनमे नही हिम्मत
सामने बड़ के आगे आने की
हाँ, पर पीछे से करते वर हर बार ।
पर सत्ता के गलियारो मे
नेताओ के बगियरों मे
कुर्सी लेने के खातिर
दुश्मन से सम्झौता करते है
नासमझी कदम उठाते है
आए कोई ऐसा नेता
लाल बहादुर या सुभाष जैसा
जो मातृभूमि पर
करे सर्वस्य निछावर
अपना तन मन
अपना जीवन
नही चाहिए मुफ्त की बिजली,
मुफ्त का चावल, मुफ्त का रासन ।
बस मिले सबको समान अवसर अपने हुनर को
दिखाकर करे अपना रोजगार ।
दुश्मन का भी रूह काँपे
सौ बार, और ले कदम पीछे हजार
हम है फौजी,
हम रहे फौजी हर जीवन ।
होगा अपना सपना साकार
एक दिन,
होगा खुशाल देश सच मे
एक दिन,
उस दिन हर माँ की आंखे
अपने लाल को देख खुश होगी ।
और, मातृभूमि भी अपने
बच्चों पर नाज़ उठाएगी ॥