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Rajeev Pandey

Abstract

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Rajeev Pandey

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देर नहीं लगती

देर नहीं लगती

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स्मृति पटल में अंकित चीजें भूलते देर नहीं लगती

प्रेम के आशियानों को रक्तरंजित होते देर नहीं लगती

अरे ये जो चारों तरफ है ये सब तमाशा है 

सुना है वक़्त बदलते देर नहीं लगती।


राजा को रंक बनते देर नहीं लगती 

मृत्यु रूपी दरवाजे खुलते देर नहीं लगती

दिन- रात ,घड़ी , पहर सब बदलता है यहां

सुना है वक़्त बदलते देर नहीं लगती।


बर्फ को जल में पिघलते देर नहीं लगती

मौसम परिवर्तन में देर नहीं लगती

कईयों का तख्तापलट हो जाता है यहां

सुना है वक़्त बदलते देर नहीं लगती।


इंसानों का व्यवहार बदलते देर नहीं लगती

गिरगिट को रंग बदलते देर नहीं लगती 

वफादार ही यहां हो जाते हैं बेवफा यहां 

सुना है वक़्त बदलते देर नहीं लगती।


वक़्त क्या है ? घड़ी की टिक टिक

या अपनों के अपनेपन का पर्दाफाश,

रत्नजड़ित हीरों का धुआं धुआं या

कोयले के कोहिनूर परिवर्तन की गाथा।


अरे वक़्त तो ऐसा वक़्त है वक़्त पर आता है

और वक़्त पर ही वक़्त के साथ चला जाता है

थमता नहीं क्षण भर के लिए भी ये कमबख्त 

क्योंकि वक़्त ही ऐसा वक़्त है जो सबका आता है।


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