उलझनें
उलझनें
कभी - कभी स्वयं में उलझ जाते हैं आप
उचित अनुचित में अंतर नहीं कर पाते आप
सोचते हैं कि यह तो सही था
दूसरे क्षण लगता यह भी कब गलत था।
उस स्थिति में क्या करेगे आप
एक तरफ गांधी को मानते हैं
दूसरी ओर भगत सिंह को भी जानते हैं आप
उसी क्षण स्वयं की कशमकश से पूछते हैं।
क्या ज्ञान की प्राप्ति के लिए ध्यान जरूरी है
मद मोह लोभ का त्याग जरूरी है
माँ बाप को स्मृति में लाए तो
याद आए श्रवण कुमार अपने आप।
उस क्षण गहरी सांसे लेते हैं आप
कुछ पल स्वयं में मौन हो जाते है
विचलित हो जाते हैं किसे सुनाए अपनी व्यथा
बेहतर नहीं की ना बनने दे इसे मर्म कथा ।
उलझने भी जरूरी है लगा अपने आप
सुना है चीनी भी मीठी लगती है मिर्च के बाद
ये सुख दुख अवसाद उन्माद तो क्षण भंगुर हैं
वास्तविकता तो कुछ और ही है ! क्या कहेंगे आप?