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अजय एहसास

Tragedy

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अजय एहसास

Tragedy

डरता हूँ

डरता हूँ

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डरता हूँ आने वाले समय से,

जो भविष्य में भयंकर विपत्तियां

लेकर आने वाला है।

नर संहार ,शोषण, अत्याचार और

भीषण रक्तपात होनेवाला है।

धर्मवाद, जातिवाद , क्षेत्रवाद, प्रान्तवाद

इन सबके पीछे आखिर कौन है?

जब भी किसी से पूछता हूँ

कारण इस बात पर सब मौन हैं।

तमाम सामाजिक कुरीतियों को

देख कर मैं भीतर ही भीतर घुटता हूँ ,

जब भी लड़ना चाहूं इन पत्थरों से,

मिट्टी के खिलौनें की तरह टूटता बिखरता हूँ ।

जब भी रैन के साथ देखूं अम्बर को ,

सभी तारे एक जैसे नज़र आते हैं।

मन ललचाता है सोचता है आखिर

हम भी ऐसे क्यों नहीं हो जातें हैं।

लेकिन फिर डर जाता हूँ कि

यदि हम तारों की तरह हो जाय।

तो कहीं ऐसा न हो कि तारों की तरह

एक-एक करके टूट जाय।

मन में तमाम वेदनाएं लिए हुए

डूब जाता हूँ एक वैचारिक संसार में।

कुछ तो बदलेगा,कभी तो बदलेगा

जी रहा हूँ बस इसी आ में।

रात्रि में नींद को भगाकर,

विचारों को बुलाकर कोई भी 

उलझन सुलझ नहीं पाती है।

शाम होती है , रात बीत जाती है

फिर वही उलझन भरी सुबह चली आती है।

डर जाता हूँ , सहम जाता हूँ

दिन में होने वाली घटनाओं को सोचकर ।

वो आता है, सरेआम कत्ल करके चला जाता है,

मैं रह जाता हूँ अपने बालों को नोचकर।


         


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