STORYMIRROR

bhandari lokesh

Tragedy

4  

bhandari lokesh

Tragedy

डोली और ज़नाज़ा

डोली और ज़नाज़ा

1 min
282

उधर सजी थी डोली तेरी

इधर जनाज़ा मेरा था

मेंहदी थी तेरे हाथों में

और नाम छुपाया मेरा था,

लाल सुर्ख शादी का जोड़ा

लगे कि चाँद जमीं पर हो

इधर क़फ़न भी सुर्ख स्याह था,

जैसे कि तेरा दिलबर हो

पलक झुकाये शर्मीलापन

नज़र पे किसका पहरा था,

उधर सजी थी डोली तेरी

इधर जनाज़ा मेरा था

ये माथे का टीका तेरा

छन छन करती पायलिया

खन खन करती चूड़ी तेरी

और तड़पता सांवरिया

आज जुदाई की बेला थी

हर तरफ घना अंधेरा था

उधर सजी थी डोली तेरी

इधर जनाज़ा मेरा था

सज धज कर तू दुल्हन बन

और सजन के पास गई

बैठ गई खामोश दीवानी

पास ना उसकी साँस रही

इधर दिवाना लेटा था

सज धज कर मृत्युशैया पर

ये बदनाम कहानी थी

या राज बहुत ही गहरा था

उधर सजी थी डोली तेरी

इधर जनाज़ा मेरा था!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy